उत्तराखंड में जल संरक्षण और धाराओं का पुनर्जीवन एक महत्वपूर्ण पहल बन रही है। राज्य सरकार ने जल स्रोतों को बचाने और पुनर्जीवित करने के लिए स्प्रिंग शेड और नदी पुनर्जीवन एजेंसी (SARA) की स्थापना का प्रस्ताव तैयार किया है। इस प्रयास से न केवल सूख चुके जल स्रोतों को फिर से जीवित किया जाएगा बल्कि राज्य की पारंपरिक नदियों और धाराओं को भी संरक्षित किया जाएगा।
जल संरक्षण के प्रमुख प्रयास
- सार्वजनिक भागीदारी: गांव स्तर पर धारा-नौला संरक्षण समितियों का गठन किया जाएगा ताकि स्थानीय समुदाय इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले सके।
- संवेदनशील जल स्रोतों की पहचान: राज्यभर में वर्षा आधारित नदियों और धाराओं का मानचित्रण किया जाएगा, जिससे संवेदनशील जल स्रोतों को संरक्षित किया जा सके।
- चेक डैम निर्माण: बारिश के पानी को रोकने और संरक्षित करने के लिए चेक डैम बनाए जाएंगे।
नदी पुनर्जीवन परियोजनाएं
उत्तराखंड में कई नदियों के प्रदूषित हिस्सों को पुनर्जीवित करने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत योजनाएं शुरू की गई हैं। इनमें भेला, ढेला, किच्छा, कोसी, नंधौर और पिलखर जैसी नदियां शामिल हैं। इन परियोजनाओं में 17 नालों को टैप कर 9 एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) बनाए गए हैं, जिनकी कुल क्षमता 30.30 एमएलडी है।
हीवल नदी पुनर्जीवन परियोजना
हीवल नदी पर आधारित देश की पहली “रिवर लैंडस्केप” परियोजना ने 50 किलोमीटर लंबी नदी को पुनर्जीवित किया है। यह परियोजना नदी के साथ-साथ उसके आसपास के पूरे परिदृश्य पर केंद्रित है।
पर्यावरणीय लाभ
- जल स्रोतों का स्थायित्व: सूख चुके 12,000 से अधिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा गया है।
- कृषि उत्पादकता में वृद्धि: वर्षा आधारित क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बढ़ाकर कृषि उत्पादन को स्थिर किया जा रहा है।
- स्थानीय रोजगार सृजन: इन परियोजनाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं।
यह पहल उत्तराखंड के जल संसाधनों को संरक्षित करने और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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