भारत ने अंतरिक्ष में अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने न्यूक्लियर प्रोपल्शन रॉकेट इंजन विकसित किया है, जो इसे एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित करेगा।
न्यूक्लियर प्रोपल्शन का महत्व
ISRO के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने हाल ही में कहा कि भारत का न्यूक्लियर सेक्टर भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को शक्ति प्रदान करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल में शामिल दो रेडियोआइसोटोप हीटिंग यूनिट्स ने सफलतापूर्वक काम किया, जिससे न्यूक्लियर प्रोपल्शन के लिए उत्साह बढ़ा है।
भविष्य की योजनाएँ
ISRO ने घोषणा की है कि वह 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के पहले चरण को तैयार करेगा, जो अंतरिक्ष में सहयोगात्मक अनुसंधान के लिए एक अंतरराष्ट्रीय मंच होगा। इस स्टेशन का उद्देश्य इंटरप्लैनेटरी मिशनों, माइक्रोग्रैविटी स्टडीज और स्पेस बायोलॉजी पर अनुसंधान करना है।
न्यूक्लियर थर्मल रॉकेट इंजन
न्यूक्लियर थर्मल रॉकेट इंजन (NTR) एक ऐसी तकनीक है जिसमें न्यूक्लियर रिएक्शन से उत्पन्न गर्मी का उपयोग किया जाता है, जिससे रॉकेट को अधिक कुशलता से चलाया जा सकता है। यह पारंपरिक रॉकेट ईंधन की तुलना में दोगुनी या तिगुनी पेलोड क्षमता प्रदान कर सकता है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा
इस विकास के साथ, भारत अन्य वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ प्रतिस्पर्धा में एक कदम और आगे बढ़ गया है। अमेरिका और अन्य देशों ने भी न्यूक्लियर प्रोपल्शन तकनीकों पर काम करना शुरू कर दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण में न्यूक्लियर तकनीकों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
इस प्रकार, ISRO का यह कदम न केवल भारत की अंतरिक्ष शक्ति को बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसे एक प्रमुख स्थान दिलाएगा।