मुसलमानों की जातियों की पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना होगी, जिससे पसमांदा मुसलमानों जैसे पिछड़े वर्गों की पहचान और विकास के लिए नई राह खुलेगी। यह कदम सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में बड़ा बदलाव साबित होगा।
सरकार ने पहली बार देश की आम जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना कराने का ऐतिहासिक फैसला लिया है, जिसमें मुसलमानों की जातियों की भी गिनती की जाएगी। अब तक मुसलमानों की गिनती केवल धर्म के आधार पर होती थी, लेकिन इस बार धर्म के साथ-साथ जाति का भी कॉलम होगा, जिससे मुस्लिम समाज के भीतर मौजूद विभिन्न जातियों का पता चलेगा।
जातिगत जनगणना का महत्व और उद्देश्य
मुस्लिम समाज में भी कई जातियां हैं, जिनमें पसमांदा मुसलमान मुख्य रूप से पिछड़े वर्ग में आते हैं। यह जनगणना खासतौर पर पसमांदा मुसलमानों की स्थिति को उजागर करेगी, जो मुस्लिम समाज का लगभग 80-85% हिस्सा हैं, लेकिन जिनका विकास अब तक अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पाया है। इस डेटा के आधार पर सरकार उनके लिए विशेष योजनाएं और आरक्षण की संभावनाओं पर विचार कर सकेगी।
क्या बदलेगा इस जनगणना से?
- सटीक आंकड़े: मुस्लिमों की जातियों का सटीक आंकड़ा मिलेगा, जो पिछड़े वर्गों की पहचान और विकास के लिए जरूरी है।
- ओबीसी कैटेगरी में शामिलगी: पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी की श्रेणी में शामिल करने की संभावना बढ़ेगी, जिससे उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मिल सकेगा।
- नीतिगत बदलाव: जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाने और सब-कैटेगरी के आधार पर नीति निर्धारण पर भी विचार होगा।
जनगणना कैसे होगी?
इस बार की जनगणना डिजिटल और बायोमेट्रिक तकनीक के साथ होगी, जिसमें आधार से जुड़ी जानकारी और एआई का भी उपयोग किया जाएगा। अगले दो से तीन महीनों में यह प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और लगभग पंद्रह दिन में पूरी कर ली जाएगी। हालांकि आंकड़ों के विश्लेषण में कुछ साल लग सकते हैं।
मुस्लिम जातिगत जनगणना का ऐतिहासिक संदर्भ
भारत में 1951 के बाद मुस्लिम जातियों की जनगणना नहीं हुई है। अंग्रेजों के समय और 1981 तक कुछ हद तक जाति आधारित गणना होती रही, लेकिन मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के दबाव में इसे रोक दिया गया। अब पहली बार मुसलमानों की जातियों की व्यापक और आधिकारिक जनगणना होगी, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है।
राष्ट्रीय और राजनीतिक संदर्भ
जातिगत जनगणना का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक में लिया गया। यह कदम न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम जातियों के लिए भी समान रूप से लागू होगा। बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों ने पहले ही अपने स्तर पर जातिगत सर्वे कराए हैं, जिनमें मुस्लिम जातियों की गणना भी शामिल थी।